नज़र तिरछी करे घायल सभी को इस ज़माने में
नज़र तिरछी करे घायल सभी को इस ज़माने में

नज़र तिरछी करे घायल सभी को इस ज़माने में

( Nazar Tirchi Kare Ghayal Sabhi Ko Is Jamane Mein )

 

 

नज़र  तिरछी  करे  घायल  सभी को  इस  ज़माने में।

है  मिलता  ज़ख्म  वो दिल को नहीं आता बताने मे।।

 

उसी  की  याद  आती है  सदा  दिन -रात घायल को।

करो  कोशिश  भले कितनी  नहीं  आती  भुलाने में।।

 

उम्र  ही  बीत  जाती  है न जाते  दाग़  इस  दिल से।।

भरे   है  आँख  के   मोती  मुहब्बत  के   ख़जाने में।।

 

बहारें  फिर  नहीं आती  उजङ  जाए  अगर गुलशन।

कमल दिल का  अगर मुरझा नहीं आता खिलाने में।।

 

लगाते  रोग ये  दिल  से “कुमार”अंजाम  हो कुछ भी।

कोई  तो  बात  होती  है  किसी  आशिक-दिवाने में।।

 

कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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