कभी रुको जरा | Kabhi Ruko Zara
कभी रुको जरा
( Kabhi ruko zara )
जिंदगी दौड़ती, भागती
कहती है रुको थमो जरा
पलट के तुम देखो जरा
पद चापो को सुनो जरा
फिर बचपन में आओ जरा
दरख़्त दरवाजे, खिड़कियां
सीढिओ को पहचानो जरा
एक दिन बचपन जी लो जरा
खिलखिलाहटों को सुनो जरा
लगता है जैसे सब मिल गया
यादों का मेला सा लग गया
बीता हर लम्हा फिर मिल गया
बेशक खंडहर है तुम्हारे लिए
मुझे बाबुल का घर मिल गया
चुपचाप खड़ी में रह गयी
दिल अपनों से जा मिल गया
वीराने टूटे दरो, दीवार थे मगर
लगा कोई खजाना मिल गया
स्मृतियों का पुलिंदा खुल गया
झरोखे से झांकता लड़कपन
खुशियों का समंदर मिल गया