कान्हा | Kanha
कान्हा
( Kanha )
भाद्र पक्ष की अष्टमी तिथि
घनघोर अंधियारी वह रात
रोहिण नक्षत्र में जन्म लयो
मथुरा मे कंस की कारागार
वसुदेव देवकी के भय लाल
सो गए द्वारपाल पहरेदार
स्वयं खुले कारागार के द्वार
रख टोकरी में नन्हा सुकुमार
शेषनाग की छाया तले
वसुदेव करके यमुना पार
छोड़ आए मित्र नंद के द्वार
पालनहारी बनी यशोदा मैया
गोपियों के पाये उलहाने चार
नटखट, कान्हा नंदकिशोर
माखन गांव भर का खाते
मित्रों को चोरी से खिलाते
ग्वाला बन गायों को चराते
मुरली मनोहर वही बजाते
नाचे राधा गोपियों के संग
बाल गोपाल रास रचाते
मोर पंख माथे पर सोहे
चंदन का वो तिलक लगाते
श्याम वरन पीतांबर धारी
जगदीश्वर वह कहलाते
श्री हरि केशवम नारायण
विष्णु कृष्ण रूप में आते
अपनी एक उंगली पर देखो
गोवर्धन को हंसकर उठते
नित नए-नए रूप दिखाते
जगत के स्वामी पालनहार
गायों के रक्षक बनकर
संरक्षण घर-घर दिलवाते
दीन दुखी के दुख हरते
सुदर्शन धारी कृष्ण मुरारी
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
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