कशमकश | Kashmakash shayari
कशमकश
( Kashmakash )
फैसला हक मे है मेरे या मेरी हार हुयी है।
बस इसी कशमकश में रात फिर बेकार हुयी है।।
सोचते सोचते आंखों में आगये आंसू,
फिर वही बात कि बारिश बहुत दमदार हुयी है।।
तमाशा देखने वालों कभी ये सोचा भी,
यहां तक पहुंचने में हश्ती ख़ाकसार हुयी है।।
वफ़ा लिहाज हया उम्मीदें और क्या क्या,
ये गलतियां है शेष हमसे बार बार हुयी है।।
नये मकान में आया तो एक मुनाफा हुआ,
नये गमों की फौज यहां भी तैयार हुयी है।।