कवि हूँ कविता में जिन्दा रहता हूँ | Kavi Hoon
कवि हूँ, कविता में जिन्दा रहता हूँ
( Kavi Hoon Kavita me Jinda Rahta Hoon )
तुम समझ सको, शब्दों की भाषा,
तुम जान सको, सपनों की आशा।
बादलों का उड़ना, तुम देख सको,
बहती हवा को, तुम महसूस करो।
तुम डूब के जानो, सागर की गहराई,
तुम उड़ के नापो, अम्बर की ऊँचाई।
सुनो कभी तुम, पंछी का मीठा गाना,
पढ़ो कभी तुम, सांझ का ढल जाना।
पढ़ पाओ तुम, मन की अभिलाषा,
जान सको तुम, छंदो की परिभाषा।
तुम डूब सको, कविता के सागर में,
तुम रस पाओ, शब्दों की गागर में।
लक्ष्य यही मेरा, तुम तक पहुँच सकूँ,
तुम समझ सको, कुछ ऐसा लिखूँ।
हाथ कलम ले, कागज पर लिखता हूँ,
साहित्य कर्म मेरा, भाषा में दिखता हूँ।
सबके, मन को आनंदित करता हूँ,
कवि हूँ, कविता में जिन्दा रहता हूँ…।
अनिल कुमार केसरी,
भारतीय राजस्थानी