Kavita Besuri Bansuri

बेसुरी बांसुरी | Kavita Besuri Bansuri

बेसुरी बांसुरी

( Besuri bansuri )

 

क्यों बनाते हो जीवन को

बेसुरी सी बांसुरी

फूंक कर सांसों को देखो

सुर भरी है राग री।

 

चार  दिनों की चांदनी है

फिर अधेरी रात री।

कब बुझे जीवन का दीपक

कर लो मन की बात री।

 

जोड़ कर रख ले जितना भी

धन सम्पत्ति साथ री,

अंत में तू रह जायेगा

भींच दोनों हाथ री।

 

बांस की ही बनी बांसुरी

बांस की है तीर री,

एक करती घायल मन को

एक हरती पीर री।

 

मधुर सुरीली टेर भर ले

भर ले तु अनुराग री

फूंक कर सांसों को देखो

सुर भरी है राग री।

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

यह भी पढ़ें :-

समय | Samay par Kavita

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *