बिन बादल बरसात | Kavita bin badal barsaat
बिन बादल बरसात
( Bin badal barsaat )
महक जाए चमन सारे दिल की वादियां घर हमारे।
झूम उठे मेरा मन मयूरा मुस्कुरा उठे चांद वो तारे।
हो जाए दिल दीवाना मधुर सुहानी जब लगती रात।
मन का मीत तेरे आने से होती बिन बादल बरसात।
कोई नया तराना लिखता होठों का मुस्कुराना दिखता।
चेहरे की चमकती चांदनी मौसम बड़ा सुहाना दिखता।
मन आंगन की प्रेम कुटि में पवन करता दिशा से बात।
झील सी आंखों से झरता आई हो बिन बादल बरसात।
कोई सपना सच लगता है कोई अपना अब लगता है।
अपनापन प्रेम भरा सागर कोना कोना सब लगता है।
मानव धर्म से बढ़कर जग में होती ना ऊंची है जात।
निर्धन घर लक्ष्मी बरसे समझो बिन बादल बरसात।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )