Kavita | दबे हुए अरमान
दबे हुए अरमान
( Dabe hue armaan )
हर बार देख कर तुमकों क्यों,अरमान मचल जाते है।
तब भाव मेरे आँखों मे आ, जज्बात मचल जाते है।
मन कितना भी बाँधू लेकिन, मनभाव उभर जाते है,
दिल की धडकन बढ जाती है,एहसास मचल जाते है।
क्या ये मेरा पागलपन है, या तेरे रूप का जादू।
मद्मस्त हवा में घुली हुई, तेरे सांसों की खूशबू।
या प्यार पुराना उभर रहा ,पतझड के बाद बहारे,
या शेर को फिर से भाया है,सूखा सा फल वो काजू।
शायद तुझमें भी हलचल है,जो मुझमें होता रहता है।
तेरे ही सह पर तो जाँना,मन शेर का मचला करता है।
अब तोड़ के सारे बन्धन को, कुछ ऐसा हम करते है।
अरमान मचलते सांसों को, लब आज मिला देते है।
जो होना है वो होगा ही, होनी सें अब डरना कैसा।
यौवन दोनों का ढलना है,इस बात का अब रोना कैसा।
गुल खिला ही देते है दोनो,बस हिम्मत बाँध के आ जाओ।
रंगीन खिडकियां बन्द करों, समाज का अब रोना कैसा।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
यह भी पढ़ें : –