Kavita Haqeeqat

हकीकत की भूल | Kavita Haqeeqat

हकीकत की भूल

( Haqeeqat ki Bhool ) 

 

संवरती नही कभी
हकीकत की भूल
नुमाइश की जिंदगी
कागज के फूल

बंजर जमीं के नीचे
व्यर्थ बीज की गुणवत्ता
लोभी नेता के हाथों
फली कब देश की सत्ता

भरते हैं उडान हरे परिंदे
सभी को आसमान नहीं मिलता
और की उम्मीद पर
गुल नही खिलता

होती हैं आजमाइशें
उन्हे इम्तिहान मान लेना
चाहिए कामयाबी तो
दिल में ठान लेना

देखना न थकान मन की
मुकाम की दूरी देख लेना
हर कदम पर होगी कम दूरी
पहुँच के पहले नही मजबूरी

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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