हे! माॅं | Kavita Hey Maa
हे! माॅं
( Hey Maa )
हे मां आ जा तू फिर से
तेरे आंचल में छिप जाऊं ,
मैं बैठ गोंद में तेरे
फिर देख तुझे मैं पांऊ।
तू लिए वेदना असीमित
पाली भी मुझको कैसे?
तेरी त्याग तपस्या करुणा
नैनों से झरते आंसू
गिरते तेरे आंचल में
मैं भूल जिसे ना पाऊं।
फिर बचपन क्यों न आए!
मां अंगुली पकड़ चलाए
जिसकी छाया से मुझ पर
कोई बला पास ना आए,
मन की मेरी पावन देवी
अब जीवन के इस क्षण में
दर्शन कैसे तेरी पाऊं।
मठ मंदिर में जा जा कर
मुझको पाने के खातिर
सह ली हर कष्ट मुशीबत
खुद भूखी रह रह दिन भर
मुझे अमृत पान करायी
ढूढ़ूं मां कोने कोने
पर तुझको कहीं ना पाऊं।
तू धूप धूप चल चल कर
प्यासी भूखी रह रह कर
बढ़ चली थी अपने पथ पर
मुझे आंचल से लिपटायी,
वो आंचल तेरी कंधे
तेरा प्यार तेरी ममताई
फिर से आ जा तू माता
मैं तुझ बिन रह न पाऊं।
दुनिया की कोई दौलत
रिस्तें अनमोल खजाना
अनमोल कहां है तुझसे
सबने मुझको पहचाना,
बिन तेरे जग अंधियारा
तू सूरज चंदा तारा
लेकर आंखों में आंसू
रो रो कर तुम्हें बुलाऊं।
रचनाकार : रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश