हृदय के गाँठ | Kavita hriday ke ganth
हृदय के गाँठ
( Kavita hriday ke ganth )
1.
हृदय के गाँठ खोल के,आओ बात बढाते है।
परत दर परत गर्द है, आओ उसे उडाते है।
ये दुनिया का है मेला,भीड मे सब अन्जाने से,
पकड लो हाथ मेरा तो,दिल की बात बताते है।
2.
खुद लज्जाहीन रहे जो, वो तेरी क्या लाज बचाएगे।
खुद पर रख विश्वास शेर, हरि ही अब राह दिखाएगे।
दंम्भ रहा जितना रावण में , उतना ही दुर्योधन में,
ध्रुव प्रहलाद बनो हे मानव, ईश्वर धरती पर आएगे।
3.
भरी कल्पना ने मेरी, ऐसी अलग उडान।
तोड़ ताड़ के बन्धन सारे, पहुची तेरे पास।
प्यार अमिट है भावना, मिटे ना जिसकी प्यार,
सपनें मे ही तुम मिले जस, मीरा के मन श्याम।
4.
तुम जैसा चाहोगी मुझसे, वैसा मैं ना बन पाऊँगा।
कोशिश करके देख लिया पर,अब मैं ना कर पाऊँगा।
जैसे धरती और ये अम्बर, अपनी भी अस्तित्व यहाँ,
अपने मन को मार के तुम, जैसा मैं ना बन पाऊँगा।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )