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जीना मरना | Kavita Jeena Marna

जीना मरना

( Jeena Marna )

 

घुट घुट कर जीने से मरना बेहत्तर
घुटने टेक कर जीने से मरना बेहत्तर

अकेले आये हो आज़ाद बन कर जीना
ग़ुलाम बन कर जीने से मरना बेहत्तर

सिर ऊंचा कर जीओ अदब एह़तराम से
बेज़मीर बन कर जीने से मरना बेहत्तर

पराये मह़ल से अपनी झुग्गी झौंपड़ी अच्छी
बेआबरू बन कर जीने से मरना बेहत्तर

शराब शबाब कबाब से रूखी सूखी शान
चाटुकार बन कर जीने से मरना बेहत्तर

तलवे चाट कर बन जाते लोग त़ाक़्तवर
चापलूस बन कर जीने से मरना बेहत्तर

चुग़ल ख़ोर गिला ख़ोर बन जाते बग़लगीर
बिकाऊ बन कर जीने से मरना बेहत्तर

रोब रुतबा शानो शोक्त बरकरार रखने वास्ते
बेगै़रत बन कर जीने से मरना बेहत्तर

जीना जहान में ज्वाला बन जीओ ‘कागा’
धूंआ बन कर जीने से मरना बेहत्तर

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

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