Kavita mehngai

महंगाई | Kavita mehngai

महंगाई

( Mehngai )

 

महंगाई ने पांव पसारे कमर तोड़ दी जनता की
सुरसा सी विस्तार कर रही बढ़ रही दानवता सी

 

आटा दाल आसमान छूते भुगत रहे तंगहाली को
निर्धन का रखवाला राम जो सह रहे बदहाली को

 

दो जून की रोटी को भागदौड़ भारी-भरकम होती
स्वप्न सलोने सारे धराशाई मजबूरियां भूखी सोती

 

दिन दूनी रात चौगुनी नित बढ़ती जाती महंगाई
कैसे पाले परिवार को अब खर्चों से शामत आई

 

अनाप-शनाप खर्चे बड़े आमदनी का जोर नहीं
दिन रात मेहनत करके मिलता कोई छोर नहीं

 

दूध दही सब्जी ने देखो कैसी हवा बना ली है
जेब सारी खाली कर दे फिर भी महंगी थाली है

 

आशियाना सुहाना लगता अब तो सपना कोई
महंगाई की मार झेलते छूटे हमारा अपना कोई

 

 ?

कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

मन के नयन हजार | Geet man ke nayan hajaar

Similar Posts

One Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *