मुस्कुराया जाए | Kavita muskuraya jaye
मुस्कुराया जाए
( Muskuraya jaye )
आओ साथ मिलकर दोनो, मुस्कुराया जाए।
बिना माचिस के कुछ दिल को, जलाया जाए।
आग नही ये चाहत होगी,औरों मे सुलगेगी,
जाने कितने सुप्त हृदय मे,प्रीत के दीप जलेगी।
आओ दीपों को जलाया जाए।
मन के अंधियारे को, मिल मिटाया जाए।
शायद कुछ टूटे से दिल मे, चाहत भर दे हम दोनों।
शर्म के तटबंधो को तोड कर,कुछ दिल जोडे हम दोनो।
आओ थोडा प्यार जताया जाए।
बिना बातों के बात बढाया जाए।
आँखों में मादकता भर ले, अधरों से छलकाए।
कोई कुछ भी कह ना पाए, ऐसी बात बनाए।
आओ थोडा खिलखिलाया जाए।
बिना फूलों के हर दिल को महकाया जाए।
बिन बातों के मुस्काने से,जीवन को गति मिलती है।
शूल भरे से इस जीवन में, पुष्प अनेको खिलते है।
आओ बंगिया को सजाया जाए।
हुंकार के शब्दों से, जगमगाया जाए।
आओ साथ मिलकर दोनों, मुस्कुराया जाए।
बिना माचिस के कुछ दिल को जलाया जाए।
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )