पैरों की पायल | Kavita Pairon ki Payal
पैरों की पायल
( Pairon ki Payal )
तेरे पैरों की पायल मुझे,
दिन रात सताती है !
घुँघरू की लगा ठुमका,
फिर मुझे बुलाती है !!
सुनने पर बढ़ती बेचैनी,
बिन सुने चैन नहीं आती !
प्रतिपल बढ़ती बेचैनी,
चैन नहीं दे पाती !!
रातों की निंद मेरी,
लेकर उड़ जाती है !
चाहत की चितवन से,
फिर तृषा जगाती है !!
रूप सजाए चाह जगाए ,
मुझको ललचातीे है !
चितवन की कंकड़ मार मार
फिर पास बुलाती है !!
तेरे पैरों की पायल मुझे,
दिन रात सताती है!
कमलेश विष्णु सिंह “जिज्ञासु”
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