रोशनी के दिये | Kavita Roshni ke Diye
रोशनी के दिये
( Roshni ke Diye )
देखा है मैंने ऐसे
गुरुओं को भी
जो अपने घरों में
अंधेरा करके
दूसरे घरों में
रोशनी फैला देते है
और बदले में उन्हें
मिलता है – तिरस्कार।
सिर्फ साल के एक दिन उन्हें
सम्मान में शाल श्रीफल से
नवाज दिया जाता है
बाकी के तीन सौ चौसठ दिन
खाते है इस दुनियां से….
खैर—
अब शिक्षा का स्तर भी
हो गया है भिन्न
यह भी सौदा बन गई है
खरीदी – बेची जा रही है
डिग्रियां—
इसमें शिक्षक की भूमिका ही
खत्म-सी हो गई है
फिर – हम तुलना करते है
गुरूकुलों की शिक्षा से
चाहते है पाणिनी, कृपाचार्य,
द्रोणाचार्य जैसे गुरु–
ढूंढते है–
राम-कृष्ण-अर्जुन-एकलव्य
किन्तु —–
हम पढ़ाते है अपने नौनिहालों को
कान्वेंट अंग्रेजी स्कूलों में
और पढ़वाना चाहते है
फर्राटेदार अंग्रेजी के साथ
सूट-पैंट पहने हुये शिक्षक से।
क्या हो गया है
शिक्षा का स्तर
क्या हो गया है
शिक्षक का मापदंड
सब आधुनिकता में लिप्त
चाहे गुरु हो या शिष्य
ढूंढने से भी नही मिलते
अब वे गुरुजन
जिनको देखते ही
सम्मानभाव से सिर
नतमस्तक हो जाये
जो है पुराने गुरू
अभी भी कहीं अंधेरे में
दिया जलाने में
लगे हुए है कि
कहीं तो एक दीपक
प्रज्वलित हो
जो सारे जहाँ को
कर दें रोशन।।
डॉ. पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल, मप्र