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स्मृति शेष | Kavita Smriti Shesh

स्मृति शेष

( Smriti Shesh )

हे धरा के पंथी नमन तुम्हें

हे धरा के पंथी नमन तुम्हें
घर छूटा मिला गगन तुम्हें।

तुम चले गए हमें छोड़कर
कहे थे रहेंगे रिश्ते जोड़कर।

तय था जो होना हो गया
हे पंथी तुम नींद में सो गया।

चिर शांति मिले अमन तुम्हें
हे धरा के पंथी नमन तुम्हें।

नीज स्वार्थ के लिए न रोता हूंँ
तूझे जगाने वाला कौन होता हूंँ।

आहत हूं फिर भी मैं आहत हूंँ
टूट गया हूं माया में मर्माहत हूंँ।

चाहता हूं स्वर्ग मिले चमन तुम्हें
हे धरा के पंथी नमन तुम्हें।

Vidyashankar vidyarthi

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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