कैसे उड़े अबीर | Ude Abir
कैसे उड़े अबीर
( Kaise Ude Abir )
फागुन बैठा देखता, खाली है चौपाल ।
उतरे-उतरे रंग है, फीके सभी गुलाल ।।
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सजनी तेरे सँग रचूँ, ऐसा एक धमाल ।
तुझमे खुद को घोल दूँ, जैसे रंग गुलाल ।।
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बदले-बदले रंग है, सूना-सूना फाग ।
ढपली भी गाने लगी, अब तो बदले राग ।।
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मन को ऐसे रंग लें, भर दें ऐसा प्यार ।
हर पल हर दिन ही रहे, होली का त्यौहार ।।
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फौजी साजन से करे, सजनी एक सवाल ।
भीगी सारी गोरियाँ, मेरे सूने गाल ।।
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आओ सजनी मैं रंगूँ, तेरे गोरे गाल ।
अनायास होने लगा, मनवा आज गुलाल ।।
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बढ़ती जाए कालिमा, मन-मन में हर साल ।
रंगों से कैसे मलें, इक दूजे के गाल ।।
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स्वार्थ रंगी जब भावना, रही मनों को चीर ।
बोलो ‘सौरभ’ फाग में, कैसे उड़े अबीर ।।
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सूनी-सूनी होलिका, फीका-फीका फाग ।
रहा मनों में हैं नहीं, इक दूजे से राग ।।
डॉo सत्यवान सौरभ
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
हरियाणा