वह आदमी | Kavita Wah Aadmi
वह आदमी
( Wah Aadmi )
वह आदमी
दो कमरों के मकान में बड़ा खुश था
कि अन्ना – आन्दोलन ने
उसे राजनीति के कच्चे शीशे में जड़ा सपना दिखा दिया .
वह आदमी
सब पर आरोप मढ़ा हुआ
जा बैठा महत्वाकांक्षा के औंधे शिखर पर .
वह आदमी
चुंकि आम आदमी था
लोगों की तकलीफ़े जानता था
अत: उसने सुविधाओं का बंदरबांट किया .
वह आदमी
इस मुफ्तखोरी की लत के पीछे
बनाने लगा अपना बंगला
बंगला
जिसे वह शीशमहल कहता था .
वह आदमी
कभी तो मुड़कर अतीत की तरफ देखता
कि जनाब
जिसका घर शीशे का होता है
वह दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकता !
सुरेश बंजारा
(कवि व्यंग्य गज़लकार)
गोंदिया. महाराष्ट्र