छंद घूंघट
मान मर्यादा रक्षक, लाज शर्म धर ध्यान।
चार चांद सौंदर्य में, घूंघट सजाइए।
प्रीत की फुहार प्यारी, सुंदर सुशील नारी।
पिया मन को लुभाती, घूंघट लगाइए।
गौरी का श्रृंगार सौम्य, प्रियतम मन भाए।
गोरा मुखड़ा चमके, घूंघट दिखाइए।
पहने परिधान वो, घर की पहचान वो।
भारत की शान नारी, घूंघट हटाइए।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )