वो सुहाने पल | Kavita Wo Suhane Pal

वो सुहाने पल

( Wo Suhane Pal )

याद आते खूब हमको वो सुहाने पल।
बैठ पिता के कंधों पर करते हलचल।

अठखेलियां आंगन में हंसते मुस्काते।
दादा दादी भी घर में फूले नहीं समाते।

आस पड़ौस में आना जाना भाता था।
खेल खेलने हुजुम बड़ा जम जाता था।

बाजारों में रौनक होती चौपालों पर पहल।
वृक्षों पे चिड़िया बैठती कोयल की चहक।

मोर नाचता हमने देखा झूले सावन के।
आपस में प्यार सलोना पल भावन थे।

वो सुंदर पल भावन नजारे याद आते हैं।
बचपन की यादों को ताजा कर जाते हैं।

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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