यह मुझको स्वीकार नहीं | Kavita Yah Mujhko
यह मुझको स्वीकार नहीं
( Yah mujhko swikar nahin )
निज पथ से विचलित हो जाऊं
यह मुझको स्वीकार नहीं
पहन बेड़ियां पग में अपने
झुकने को तैयार नहीं।
देख नीर बहती आंखों में
क्रोध शीर्ष चढ़ जाता है
आंख मूंद कैसे सह जाऊं
सहन नहीं हो पाता है।
लुटे अस्मिता ठीक सामने
क्या मुझपे धिक्कार नहीं?
निज पथ से विचलित हो जाऊं
यह मुझको स्वीकार नहीं।
लाखों पीड़ित वंचित शोषित
रोते हों चिल्लाते हों,
भूखे प्यासे दिनों – दिनों तक
जीते हों मर जाते हों।
देख- देख सुन सुन कर ये सब
भर दूं कैसे फुफकार नहीं?
निज पथ से विचलित हो जाऊं
यह मुझको स्वीकार नहीं।
पथ पर बांधा हो जितने भी
मुश्किल या आसान भले
मैं सह लूंगा हंसते उसको
या रौंदूगा पांव तले,
संघर्षों से लड़ ना पाऊं
मैं इतना लाचार नहीं,
निज पथ से विचलित हो जाऊं
यह मुझको स्वीकार नहीं।
तपा स्वर्ण ही खरा उतरता
तपित सुर्य को ही देखो
मोती सहज कहां मिलता है
खुद के जीवन से सीखो,
बांधाओं से लड़ने को क्या?
अब भी हम तैयार नहीं?
अगर नहीं तो क्या तुझ पर है
थू थू और धिक्कार नहीं?
निज पथ से विचलित हो जाऊं
मुझको तो स्वीकार नहीं।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी