कोई तो है | Koi to Hai
कोई तो है
(मां पर कविता)
मन में
जीवन में
जीवन भर
सदा के लिए
दिल में बसी,
कोई तो है।
हर एक
दुख में
दर्द में
सामने
खड़ी हो जाती है
ममता की
मरहम लिए
और हवा की सांसों सी
सहला जाती है
वह…..
कोई तो है।
कभी कभी तो
घोर मुसीबत में
आह निकलते ही
मुख से
निकल पड़ती है
शब्द के रूप में
और
हर लेती है
पीड़ा को,
इस तन मन में
बसने वाली,
वह….
कोई तो है।
कभी स्वास्थ्य
तो कभी दवाई
बनकर,
कभी पर्वत
तो कभी राई बनकर
हर उधड़े रिस्तों
के लिए
तुरपाई बन कर
जीने वाली
वह……
कोई तो है।
अपनो को
छोड़ना
कितना कठिन है?
गैरों को अपना बनाना
कितना मुस्किल
फिर भी
मुस्किलों को
अपनाकर
घर को स्वर्ग
बनाने वाली
वह..
कोई तो है।
आज तो
हर रिस्तों की
डोर टूट गए हैं
कमजोर हो रहें हैं
किन्तु
सबको अपना
समझने वाली
वह..
कोई तो है।
चारों धाम
तीर्थ व्रत
सारे देवी
और भगवान
जिसके चरणों में
नतमस्तक है,
जीवन धात्री
वह……
कोई तो है।
रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी