क्या करूं | Kya Karoon
क्या करूं
( Kya karoon )
मैं अज्ञानी हूं , ज्ञान बांटता हूं
क्या करूं, इंसान हूं इंसान बांटता हूं….
बोझभर किताबें पड़ी हैं घर मे
कितनों को तो दीमक भी चाट गए हैं
देखता हूं जाते आते लोगों को बुत खाने
सोचता हूं सब पगला गए हैं
करता नही पूजा पाठ,
तब भी भगवान बांटता हूं..
हिंदू कहे ईश्वर एक है
मुस्लिम कहे अल्ला एक है
कोई कहे ईशु एक है
कोई कहे नानक एक है
कैसे समझूं कौन नेक है
सवाभिमान नही अभिमान बांटता हूं…
हिंदू बंटा जात पात मे
कोई शेख सिया और सुन्नी मे
यहूदी भी तो हैं बंटे हुए ही
कोई रूपया भर कोई चवन्नी मे
पता नही कौन किसे मिले
किसीको जन्नत तो किसी को जहन्नुम बांटता हूं
क्या करूं
इंसान हूं , इंसान बांटता हूं..
( मुंबई )