Ghazal | क्या खता थी नजर मिलाना था
क्या खता थी नजर मिलाना था
( Kya Khata Thi Nazer Milana Tha )
मुहब्बत तुझे दिल में उतार दिया ( Muhabbat tujhe dil mein utar diya ) मुहब्बत तुझे दिल से उतार दिया तेरी आरजू अब न करेगे हम मिली नफ़रत प्यार से बहुत है प्यार की झलक कब मिली है सजा बन गयी प्यार की लगी जिंदगी जल रही है ग़म से …
दोहरा चरित्र ( Dohra charitra ) दोहरा चरित्र अपनाता है चीन, बाहरी लोगों को सताता है चीन। है खोट नीयत उसकी विस्तारवादी, दादागिरी अपनी दिखाता है चीन। मारती है लात उसकी इज्जत को दुनिया, चेहरे पे चेहरा लगाता है चीन। अम्न का है दुश्मन देखो जहां का, दोगली चाल से न बाज आता है…
इल्म की रौशनियाँ ( Ilm ki Roshniyan ) सही रास्ते की पहचान कराए इल्म की रौशनियाँ, गहरी खाई में हमें गिराए जहालत की तारीकियाँ, ज़िंदगी से कुछ लम्हे चुरा पनाह लेना किताबों में, बड़ा दिलफ़रेब पुरसुकूं होती किताबों की दुनियाँ, थक जाओ गर तुम रिश्ते की गिरहें सुलझाते हुए, किताबोंमें आराम पाएगी तुम्हारी बेबस…
दर्द इतने मिले जिंदगी से ( Dard itne mile zindagi se ) दर्द इतने मिले जिंदगी से दूर हम हो गये ख़ुशी से प्यार से ही गले मिल आकर तू दिल दुखता है तेरी बेरुख़ी से कर दें रब जीस्त मेरी अमीरी जिंदगी है भरी मुफ़लिसी से लौट आ शहर से…
सभी अपने वादे से ही बदल रहा है वो ( Sabhi apne wade se hi badal raha hai wo ) सभी अपनें वादे से ही बदल रहा है वो मुहब्बत का फूल पैरों कुचल रहा है वो कभी नहीं मेहनत से तो कमाया पैसा है हराम की दौलत पैकर उछल रहा है…
आँखों से पर्दा को हटा ( Aankhon se parda ko hata ) मेरी साँसों के धारा से उभरता हुआ, फनकारी देख आँखों से पर्दा को हटा और अपना तरफदारी देख ऐ सख्स, तू इल्म-ए-उरूज़ देख, मेरी मुहब्बत न देख तुझे है गुरूर खुद पर ज़रा सा तो मेरी कलमकारी देख मुहब्बत में…