लड़खड़ाये आज फिर | Ladkhadaye aaj Phir
लड़खड़ाये आज फिर
( Ladkhadaye aaj phir )
लड़खड़ाये आज फिर ये क्या हो गया।
संभाल न पाया आज ये क्या हो गया।
धीरज रहा न धर्म बचा बेचैनी सी छाई।
स्वार्थी इंसां हुआ कैसी ये आंधी आई।
टूटी माला आज फिर ये क्या हो गया।
बिखर चले मोती फिर ये क्या हो गया।
पावन प्रेम भरी गंगा परिवार में बहती।
आस्था भरी प्रेम धारा घट घट में रहती।
मन हो गए मलीन फिर ये क्या हो गया।
यकीन पर ना रहा यकीन क्या हो गया।
अपनों से ही वो राज अब छुपाने लगे।
झूठ छल कपट का महल बनाने लगे।
पड़ गई दरारें घरों में ये क्या हो गया।
वो रहे ना अब हमारे ये क्या हो गया।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )