लक्ष्मी | Laxmi
अरे सुनते हो दीपावली का दिवस आ गया है एन वक्त पर बहुत भीड़भाड़ हो जाती है देखो धन्वंतरि पूजा चतुर्दश धनतेरस छोटी दीवाली बड़ी दिवाली भैया दूज मनाने तक बहुत सारे दिए चाहिए, इसलिए जल्दी चलकर हम लोगों को दिए और जरूरत के सामान खरीद लेने चाहिए।
शारदा जी ने थोड़ी तेज आवाज में भगवती प्रसाद जी से कहा चलिए चलिए आपको तो कोई चिंता रहती नहीं है सब कुछ हमें ही सोचनापड़ता है आपको आपको तो स्कूल शिक्षा शिक्षा पद्धति शिक्षकों के साथ विचार बीमार से ही फुर्सत नहीं मिलती बातें छिड़ गई तो फिर क्या कहने देश दुनिया की फिक्र तो आपको ही रहती है बस घर के कोई चिंता नहीं है कि घर के भी कुछ काम है।
भगवती प्रसाद जी ने कहा अरे भगवान क्यों चिल्ला रही हो बस हुकुम करो मैं तैयार हूं बस बता दो कौन सी वाली हाट जाना है म्युनिसिपालिटी वाले ऑफिस के सामने जो लगता है या पुरानी रीगल टॉकीज के पीछे वाला बाजार अच्छा हां याद आया चलो पुरानी बस्ती के सामने जो मैदान है उस बाजार में चलते हैं।
वहां कुछ जान पहचान वालों भी मिल जाएंगे और हाय हेलो हो जाएगा हाथ में कार की चाबी लेते हुए भगवती प्रसाद जी गैरेज के तरफ बढ़ गए कि मैं गाड़ी निकालता हूं मैडम आप तैयार होकर आ जाइए।
शारदा देवी ने झटपट सामान की लिस्ट पर्समें डाली और साड़ी पहने एक बड़ा सा थैला लेकर कार में आ बैठी और पति से कहने लगी हांआपने सही याद दिलाया पुरानी बस्ती वाला बाजार गए हुए बहुत अरसा हो गया वहां कुछ पुराने लोग आज जरूर मिलेंगे और भी कुछ इधर-उधर की बातें करते करते बाजार आ गया !
कार से उतर कर दोनों नजरे घूमा कर इधर-उधर का जायजा लेने लगे किस स्टॉल पर जाया जाए । अचानक शारदा देवी की नजर एक 30 35 साल के नौजवान पर गई और वह देखो उसे देखो वह सोहना कोहार जैसा लग रहा है ना भगवती प्रसाद बोले कौन अरे वही।
वही वर्षों पहले जब हम गांव गए थे मुखिया के बिटिया के शादी में तो महेश कुम्हार कलश दिया कुल्हड़ सब उसी ने तो लाया था और आपसे कहीं नौकरी लगने की बात की थी उसे बागवानी की भी अच्छी जानकारी थी तो आपने जीएम साहब के बंगले में मलिक के रूप में रखवा दिया था मुझे लग रहा है उसी का बेटा है वही नैन नक्श मै पूछती हूं।
वह तुरंत उसके दुकान पर पहुंच गई और पूछा बेटा यह दिए कैसे भाव दे रहे हो और कलश वग़ैरह सभी के दाम बता दो मुझे सब लेने हैं तो उसने अपने पत्नी से कहा अरे झुनिया- मेंम स साब को क्या-क्या चाहिए ईनके सारे सामान निकाल दो झुनिया ने गिन गिन कर दिया कलश ढक्कन सब निकाल दिए और कहां मेंम साब गणेश लक्ष्मी की मूर्ति नहीं चाहिए क्या दीपावली में तो गणेश लक्ष्मी की पूजा ही असली पूजा है ।
लक्ष्मी मैया कृपा करती हैं धन धान्य से भरती हैं हंसी-खुशी की बरसात होती है ले लो ना मेंम साहब। शारदा देवी ने कहा अरे नहीं ऐसी बात नहीं है हम तो चांदी के गणेश लक्ष्मी से पूजा करते हैं ना तो यह मिट्टी वाले गणेश लक्ष्मी की जरूरत नहीं पड़ती।
लखिया ने कहा मैंम साब यह बहुत अच्छी मूर्ति है हां हमारे लखपुरा जैसे माटी नहीं है यह शहर की मिट्टी है इसीलिए थोड़ा सा फर्क है माटी में पकने के बाद भी वह रौनक नहीं आती जो हमारे गांव की माटी में आती है।
शारदा देवी ने कहा लखिया तू कैसे लखपूरा को जानती है और यहां जौनपुर शहर में क्या कर रही है झुनिया ने हंसते हुए कहा मेंम साब मेरा ससुराल है मेरे ससुर जी यहां आए थे नौकरी करने तो हम सब यही बस गए।
तब भगवती प्रसाद ने कहा नौजवान को देखते हुए क्या नाम था तुम्हारे पिताजी का कहीं महेश कुम्हार तो नहीं सोहन ने छुटते हुए कहा हां हां बाबूजी मैं महेश कुमार का ही बेटा हूं डरते डरते उसने कहा एक बात बताऊं आप मुझको लखपुरा के ब्लॉक प्रमुख श्री नारायण दद्दा के पुत्र जैसे लग रहे हैं आप ।
भगवती प्रसाद जी ने कहा हां मैं उन्हीं का पुत्र हूं और तुम्हारे पिताजी को मैं ही जौनपुर शहर लेकर आया था नौकरी के लिए लेकिन तुमने माली का काम नहीं सीखा तुम्हारे पिताजी तो यहां बागवानी संभालते थे।
जीएम साहब के बंगले में सोहन ने कहा जी हां बाबूजी बड़े साहब के मरने के बाद उनके घर वालों ने बाबूजी को हटा दिया कि बूढ़े हो गए हो काम धाम नहीं हो पता है ठीक से तुमसे, तो वह लौट कर गांव चले गए और बिस्तर पकड़ लिए फिर कभी उठे ही नहीं स्वर्ग सिधार गए ।
मुझे फिर से अपने धंधे को अपनाना पड़ा बाबूजी मैं वही हूं आप सभी का सोहना कोहार सब गांव में हमें यही कहते थे कोई हमें सोहन कुम्हार नहीं कहता था सोहन और सोहन की पत्नी लखिया ग्राहकों सामान भी दे रही थी और बातें भी कर रहे थे ।
शारदा देवी इतना सुनने के बाद कुछ भावुक हो ग ई पूछा कितने बच्चे हैं सोहन तुम्हें_ दो बिटिया है मेंम साहब जी लखिया ने उचकते हुए कहा शारदा देवी ने पूछा अच्छा बता लखिया इस धंधे से पूरी घर गृहस्ती अच्छी तरह चल जाती है, ना ना मेंम साब बस दीपावली त्यौहार में थोड़ी रौनक रहती है।
खर्चा पानी चल जाता है अब तो गर्मी में भी सुराही घड़ा वाला जमाना नहीं रहा कुछ कमाई नहीं होती मुआ यह फ्रिज ने हमारे धंधे को मार डाला कोई काम मिल सकता है क्या ? तो बताना मैंम साब पति यह काम संभाल लेंगे धंधे को भी तो जिंदा रखना है ना और मैं कुछ और कर लूंगी तो बिटीयन की शादी ब्याह हो जाएगी।
शारदा देवी ने सामान की कीमत पूछ कर पैसे दिए और एक कार्ड दि सोहन को इस पते पर आ जाना मैं जरूर कुछ ना कुछ तुम्हारे लिए करूंगी तुम फिक्र ना कर तुम्हारी बेटियां पढ़ेंगी भी और शादी भी हो जाएगी ।
यह कहते हुए शारदा देवी कार में बैठ गई रास्ते में पति भगवती प्रसाद से चर्चा करने लगी क्यों ना हम लखिया को अपने ही स्कूल में चाय पानी रजिस्टर लाने पहुंचाने के काम पर रख ले उसके गृहस्थी में कुछ सहायता हो जाएगी और बेटियां भी हमारे स्कूल में ही पढ़ लेंगे।
भगवती प्रसाद ने हंसते हुए कहा मेरी प्यारी शारदा तुम्हारे विचार से मैं सहमत हूं तुमने मिट्टी के लक्ष्मी जी तो नहीं लिया लेकिन जीती जाती लक्ष्मी को स्वीकार कर लिया दिवाली बीते ही हम उसके घर जाएंगे सारी बात बात कर बेटियों का दाखिला यहां करवा देंगे और झुनिया को नौकरी पर भी रख लेंगे।
डॉ बीना सिंह “रागी”
( छत्तीसगढ़ )
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