मजबूरी/ लाचारी | Kavita
मजबूरी/ लाचारी
( Majboori )
सबको रखना दूरी है
यह कैसी मजबूरी है
कालचक्र का कैसा खेल
कोई शक्ति आसुरी है
मजदूर आज मजबूर हुआ
थककर चकनाचूर हुआ
लहर कोरोना कैसी आई
अपनों से भी दूर हुआ
मजबूर आज सारी दुनिया
मुंह पर मास्क लगाने को
सावधान रहकर जग में
डटकर कदम बढ़ाने को
दुनिया की सारी धड़कन को
महामारी ने धड़काया है
सांसों की सारी सरगम को
जाने क्या रोग लगाया है
मौत का तांडव जग में
कहर बरसकर टूट पड़ा
नियति की कैसी माया ये
जन जन आज मजबूर खड़ा
परमपिता परमेश्वर प्रभु
करुणानिधि क्या करता है
देखे जरा गगन से धरा को
नर एक-एक करके मरता है
जग को जीवन देने वाले प्रभु
सांसे भी सुख की कर दो
आंगन में खुशियां महका दो
खुशियों से हर झोली भर दो
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )