मन का सावन | छंदमुक्त गीत
मन का सावन
( Man ka Sawan )
कोकिला, पपीहा के मधुर बोल,
बारिश की रिमझिम, हरियाली चहुँओर।
साजन की याद सताये, रह-रहकर,
आया सावन माह देखों झूमकर–2
झूले पड़ गये, डाली-डाली
बम-बम बोले, हर गली-गली–2
कजरी की धुन,लगे मनभावन–2
बहुत सताता है ये, मन का सावन –2
मादकता में ,अवगाहन धरती,
वर्षा का रस पावन करती–2
मचल रहा, मेरा भी मन-2
बड़ा मनोहर है, ये मन का सावन —2
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
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