मस्तियों में जी मैंने
मस्तियों में जी मैंने
शराबे – शौक़ निगाहों से उसकी पी मैंने
तमाम उम्र बड़ी मस्तियों में जी मैंने
हज़ारों किस्म की चीज़ों से घर सजाया था
तुम्हारे शौक़ में रख्खी नहीं कमी मैंने
जुनून ऐसा चढ़ा था किसी को पाने का
लगाई दाँव पे हर बार ज़िन्दगी मैंने
हज़ारों ग़म थे खड़े ज़िन्दगी की गलियों में
हरेक मोड़ पे तेरी कमी सही मैंने
उसी का तुमने फ़साना बना दिया सब में
जो बात अपने लबों तक न आने दी मैंने
हमेशा सब से खुले दिल से मिलता आया हूँ
रखी खुलूस में अपने नहीं कमी मैंने
हमारे प्यार की ख़ुशबू वहाँ बरसती है
न छोड़ी आज भी साग़र तेरी गली मैंने
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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