मेरे हमसफर | Mere Humsafar
मेरे हमसफर
( Mere humsafar )
पुष्पक्रम से भरी पगडंडी
जो कि–
रंगीन फुलवारी से सजी
जिसकी
भीनी-भीनी महक
पूरे वातायन में
हवा में तैरती है।
वहीं उन पर
अनगिनत तितलियाँ
मंडराती हुई अहसास कराती
तुम्हारे अपने होने का।
जहाँ तक देखती हूँ
उन्हें कैद कर लेना चाहती हूँ
इन रंगीन खुशबू को भी
जो लहराती अपनी ही उमंग में।
वहीं—
उस बदली के ओट में छिपा चाँद
जो अब आँख- मिचौली खेल रहा है
वो दूर बर्फीली वादियों से
मैं करना चाहती हूँ
अनगिनत प्रश्न ?
मेरे हमसफर !
ख्वाब है वो मेरा शायद
जो अभी टूटा नही है
क्योंकि छू लिया है
तुमने कहीं
उन गहरे ख्वाबों में
नींद से जागकर
उन्हीं ख्वाबों को
हकीकत में
ढालना चाहती हूँ मैं—-।।
डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )
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