Love kavita | Mohabbat |-मोहब्बत|
मोहब्बत
( Mohabbat | Love kavita )
( Mohabbat | Love kavita )
सब एक जैसे ही है सब एक जैसे ही हैहांसब एक जैसे ही हैसब कहते हीं सही हैहोता भी यही हैमनोविज्ञान कहता हैलगभग भावनाओं का जालसभी मेंसमान रहता हैमेरे वाला/मेरे वालींअलग हैं यह वहम हैसब उसी हाड़ मांस किबनावट हैये जो बाहरी रंग हैये सिर्फ सजावट हैकुछ में चमक हैकुछ में फिकापन है सब्र अब…
माँ ( Maa ) जन्मदात्री धातृ अम्बा अम्बिका शुभनाम हैं। माँ से बढ़कर जगत में न तीर्थ है न धाम हैं।। नौ महीने उदर में रख दिवस निशि संयमित रही, प्राणघातक असह्य पीड़ा प्रसव तू जननी सही। कड़कड़ाती ठंड में गीला बिस्तर मैने किया, ठिठुरती ही रही मैया सूखे में मुझको किया।। तेरी गोदी…
मुर्दों के शहर में ( Murdon ke shahar mein ) फंस गऍं हम भी किसी के प्यार में, आ गऍं आज इस मुर्दों के शहर में। पड़ोसी पड़ोसी को नही पहचानता, बैठें है जबकि अपने-अपने घरों में।। गाॅंव जैसा माहौल बोली में मिठास, नही है इन शहर की काॅलोनियों में। दूसरों की…
दबे पैर ( Dabe pair ) वो दबे पैर अंदर आयी जैसे बंद कमरों में ठंड की एक लहर चुपके से आ जाया करती है और बदल गयी सारे रंग मेरे जीवन के, जैसे पहली बारिश धरा को बदल ज़ाया करती है अंकुर फूटे भावनाओं के और मदिरा सी मस्ती छा गयी कुछ ना…
कोई पेड़ प्यासा न मरे! ( Koi ped pyasa na mare ) भटके लोगों को रास्ते पर लाना पड़ता है, वनस्पतियों को जेवर पहनाना पड़ता है। बिना फूल के बहार आ ही नहीं सकती, तितलियों को भी बाग में लाना पड़ता है। कोई पेड़ प्यासा न मरे,समझो जगवालों, बादलों के हाथ मेंहदी लगाना पड़ता…
दीवाली का राम राम दीवाली के पावन पर्व पर मेरा सबको राम राम,टूटे रिश्ते भी जोड़ देती है अदृश्य इसका काम।नही लगता ख़र्चा इसमे कुछ भी न लगता दाम,दूरियां पल-भर में मिटाती बस करलो प्रणाम।। गले-मिलों वफादार-बनों समाज में बढ़ेगी शान,अमावसी अंधेरा दूर करलो खोलों ऑंख कान।हॅंसता खेलता घर लगता है तभी मन्दिर समान,खील बताशे…
सब एक जैसे ही है सब एक जैसे ही हैहांसब एक जैसे ही हैसब कहते हीं सही हैहोता भी यही हैमनोविज्ञान कहता हैलगभग भावनाओं का जालसभी मेंसमान रहता हैमेरे वाला/मेरे वालींअलग हैं यह वहम हैसब उसी हाड़ मांस किबनावट हैये जो बाहरी रंग हैये सिर्फ सजावट हैकुछ में चमक हैकुछ में फिकापन है सब्र अब…
माँ ( Maa ) जन्मदात्री धातृ अम्बा अम्बिका शुभनाम हैं। माँ से बढ़कर जगत में न तीर्थ है न धाम हैं।। नौ महीने उदर में रख दिवस निशि संयमित रही, प्राणघातक असह्य पीड़ा प्रसव तू जननी सही। कड़कड़ाती ठंड में गीला बिस्तर मैने किया, ठिठुरती ही रही मैया सूखे में मुझको किया।। तेरी गोदी…
मुर्दों के शहर में ( Murdon ke shahar mein ) फंस गऍं हम भी किसी के प्यार में, आ गऍं आज इस मुर्दों के शहर में। पड़ोसी पड़ोसी को नही पहचानता, बैठें है जबकि अपने-अपने घरों में।। गाॅंव जैसा माहौल बोली में मिठास, नही है इन शहर की काॅलोनियों में। दूसरों की…
दबे पैर ( Dabe pair ) वो दबे पैर अंदर आयी जैसे बंद कमरों में ठंड की एक लहर चुपके से आ जाया करती है और बदल गयी सारे रंग मेरे जीवन के, जैसे पहली बारिश धरा को बदल ज़ाया करती है अंकुर फूटे भावनाओं के और मदिरा सी मस्ती छा गयी कुछ ना…
कोई पेड़ प्यासा न मरे! ( Koi ped pyasa na mare ) भटके लोगों को रास्ते पर लाना पड़ता है, वनस्पतियों को जेवर पहनाना पड़ता है। बिना फूल के बहार आ ही नहीं सकती, तितलियों को भी बाग में लाना पड़ता है। कोई पेड़ प्यासा न मरे,समझो जगवालों, बादलों के हाथ मेंहदी लगाना पड़ता…
दीवाली का राम राम दीवाली के पावन पर्व पर मेरा सबको राम राम,टूटे रिश्ते भी जोड़ देती है अदृश्य इसका काम।नही लगता ख़र्चा इसमे कुछ भी न लगता दाम,दूरियां पल-भर में मिटाती बस करलो प्रणाम।। गले-मिलों वफादार-बनों समाज में बढ़ेगी शान,अमावसी अंधेरा दूर करलो खोलों ऑंख कान।हॅंसता खेलता घर लगता है तभी मन्दिर समान,खील बताशे…
सब एक जैसे ही है सब एक जैसे ही हैहांसब एक जैसे ही हैसब कहते हीं सही हैहोता भी यही हैमनोविज्ञान कहता हैलगभग भावनाओं का जालसभी मेंसमान रहता हैमेरे वाला/मेरे वालींअलग हैं यह वहम हैसब उसी हाड़ मांस किबनावट हैये जो बाहरी रंग हैये सिर्फ सजावट हैकुछ में चमक हैकुछ में फिकापन है सब्र अब…
माँ ( Maa ) जन्मदात्री धातृ अम्बा अम्बिका शुभनाम हैं। माँ से बढ़कर जगत में न तीर्थ है न धाम हैं।। नौ महीने उदर में रख दिवस निशि संयमित रही, प्राणघातक असह्य पीड़ा प्रसव तू जननी सही। कड़कड़ाती ठंड में गीला बिस्तर मैने किया, ठिठुरती ही रही मैया सूखे में मुझको किया।। तेरी गोदी…
मुर्दों के शहर में ( Murdon ke shahar mein ) फंस गऍं हम भी किसी के प्यार में, आ गऍं आज इस मुर्दों के शहर में। पड़ोसी पड़ोसी को नही पहचानता, बैठें है जबकि अपने-अपने घरों में।। गाॅंव जैसा माहौल बोली में मिठास, नही है इन शहर की काॅलोनियों में। दूसरों की…
दबे पैर ( Dabe pair ) वो दबे पैर अंदर आयी जैसे बंद कमरों में ठंड की एक लहर चुपके से आ जाया करती है और बदल गयी सारे रंग मेरे जीवन के, जैसे पहली बारिश धरा को बदल ज़ाया करती है अंकुर फूटे भावनाओं के और मदिरा सी मस्ती छा गयी कुछ ना…
कोई पेड़ प्यासा न मरे! ( Koi ped pyasa na mare ) भटके लोगों को रास्ते पर लाना पड़ता है, वनस्पतियों को जेवर पहनाना पड़ता है। बिना फूल के बहार आ ही नहीं सकती, तितलियों को भी बाग में लाना पड़ता है। कोई पेड़ प्यासा न मरे,समझो जगवालों, बादलों के हाथ मेंहदी लगाना पड़ता…
दीवाली का राम राम दीवाली के पावन पर्व पर मेरा सबको राम राम,टूटे रिश्ते भी जोड़ देती है अदृश्य इसका काम।नही लगता ख़र्चा इसमे कुछ भी न लगता दाम,दूरियां पल-भर में मिटाती बस करलो प्रणाम।। गले-मिलों वफादार-बनों समाज में बढ़ेगी शान,अमावसी अंधेरा दूर करलो खोलों ऑंख कान।हॅंसता खेलता घर लगता है तभी मन्दिर समान,खील बताशे…