मुहूर्त | Muhurat par kavita
मुहूर्त
( Muhurat )
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
1.न जन्म मुहूर्त से हुआ, न मृत्यू होगी किसी मुहूर्त मे |
फिर क्यो सारी जिन्दगी घूमें, शुभ मुहूर्त के चक्कर मे |
क्या शुभ है क्या अशुभ, सब आधीन है प्रकृति सूत्र मे |
फिर क्यों सारी जिन्दगी ढूंडे, खट्टापन मीठी सक्कर मे |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
2.जितने जन जितने दिल, जितने दिमाग दुनिया मे |
उतनी बातें उतने मुहूर्त, उतने ही फितूर दुनियां मे |
किसी का कहना इस जीवन मे, पुन्य करोगे जितने |
अगला जीवन भी संबर जाएगा, सुख मिलेंगे उतने |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
3.कोई कहता पूर्व जन्म के, पाप पुन्य जोड़े जाते |
कोई कहता जो यहीं करोगे, यहीं भारोगे रोते गाते |
शादी के वचनों मे पंडित, सात जन्मों के बन्धन बांधे |
वर्तमान मे कौन जन्म है, दूसरा या सातबां बोलो राधे |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
4.जो करता ग्यान की बातें, खुद पर हो बुरा लगता |
जो करता अग्यानता बस, खुद पर गर्व भरा लगता |
सब को चाहिए सत्य वचन, परोसें तो बिचलित होते |
छोड़ के थाली उठ भागते, फिर बुरी तरह चर्चित होते |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
5.क्या राम जानकी के विवाह का, मुहूर्त नहीं निकला होगा |
गुण भी उनके ठीक मिले थे, ग्यानी गुरूओं ने सम्हाला होगा |
राजतिलक का भी मुहूर्त, ऋषी मुनियों ने मिल निकाला था |
फिर क्यों राजा रामचन्द्र को, वन चौदह बरस निकाला था |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
7.भागता मानव भ्रम के पीछे, सत्य छोड़ता सदियों पीछे |
जन्म-मौत जो अटल सत्य हैं, इन्ही से डर अंखियां मीचे |
जन्म से लेकर मरते दम तक, बस ढ़ोंगीपन मे जीते हैं |
नकली ढ़ोंगो के पीछे भागें, असली रब से कोषों पीछे हैं |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
6.मेरी मानो सच्चे दिल से, ईमानदारी से अच्छे काम करो |
जो होगा वो नियति करेगी, तुम अपना फर्ज प्रदान करो |
सोम से लेकर रबि तक, सारे दिन ईश्वर के सब अच्छे होते |
मन की शंका त्याग दे अपने, सब काम सफल अच्छे होते |
क्यों भागे मनवा व्यर्थ मुहूर्त के पीछे ||
कवि : सुदीश भारतवासी