खाए हो चोट दिल पे | Mujra Khaye ho Chot Dil pe
खाए हो चोट दिल पे!
( Khaye ho chot dil pe )
( मुजरा )
खाए हो चोट दिल पे मरहम लगाऊँगी,
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ मैं अपना बनाऊँगी।
तसव्वुर मेरे हरदम रहोगे,
कुंवारे बदन का रस भी चखोगे।
काँटों की सेज छोड़, फूल पे सुलाऊँगी,
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ मैं अपना बनाऊँगी,
खाए हो चोट दिल पे मरहम लगाऊँगी।
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ………..
खजाना ये रूप का मुझसे तू ले लो,
बदले में राजा दिल मुझको दे दो।
जवानी की तुमसे नथ उतरवाऊँगी,
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ मैं अपना बनाऊँगी,
खाए हो चोट दिल पे मरहम लगाऊँगी।
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ…..
जलेगा चराग़ मेरा हवा क्या करेगी,
दो जिस्म एक जां बनके देखो जलेगी।
उमरिया ये सारी मैं तुमपे लुटाऊँगी,
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ मैं अपना बनाऊँगी,
खाए हो चोट दिल पे मरहम लगाऊँगी।
रफ़्ता-रफ़्ता सइयाँ…..
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई