मुस्कान | Muskaan

मुस्कान

( Muskaan ) 

 

ढा गई गजब मुस्कान तेरे होंठों की
देखते ही रह गए झील सी आंखों मे
गालों पर उतर आई केसों को लड़ी
फेर गई मुस्कान हौले से मुझमें भी…

जाने किस घड़ी मे रचा मालिक ने तुझे
तुझ सी कोई और नजर आई ही नही
समाई तू मुझमें या खुद को समाया तुझमें
तेरी इक मुस्कान भी कायली कर गई…

जलवों की भीड़ भी अब लगे है फीकी
इन अदाओं के पर भी क्या होंगी अदाएं
तू मिले न मिले,गम नही इसका मुझे अब
गाहे बगाहे,मुस्कान का दीदार होता रहे..

हिम्मत ही नहीं की छू लूं कहे पर भी तेरे
ख्याल से ही कांपने लगी हैं अंगुलियाँ
खुद ही रख हांथ ,देख धड़कनों को जरा
असर ये मुस्कान का ,तो आगे हाल क्या..

रखना सलामत, तू खुद को गैरों से जरा
रहाकर परदे मे,खुद को छुपाकर भी जरा
कसम जज्बात की,यूं न लुटा मुस्कान अपनी
कातिल निगाहों मे रख,कुछ तो रहम जरा..

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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