नहीं कोई शहर में आशना यहां मेरा | Ghazal
नहीं कोई शहर में आशना यहां मेरा
( Nahin koi shahar mein aashna yahan mera )
नहीं कोई शहर में आशना यहां मेरा !
हाले दिल ये कौन जो पूछता यहां मेरा
कि सोचता हूँ नगर छोड़ दूँ इसलिए मैं
नहीं कोई तन्हाई के सिवा यहां मेरा
उदास पन इसलिए भर गया दिल के अंदर
मुहब्बत की कर गया दिल ख़ता यहां मेरा
फिरता हूँ मैं दर बदर हर गली गली में ही
नहीं कोई भी नगर में आसरा यहां मेरा
ख़ुशी में शामिल भला मेरी होता क्या वो ही
सगा ख़ुशी से ही मेरी जला यहां मेरा
सफ़र तन्हा जिंदगी का नहीं कटता है अब
किसी से दिल ये मिला दें ख़ुदा यहां मेरा
गया जब से शहर वो गांव छोड़कर आज़म
नहीं लगता दिल उसके ही बिना यहां मेरा
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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