नशा | Nasha
नशा
( Nasha )
नशा मुक्ति दिवस पर एक कविता
अच्छों अच्छों को नशा
कितना बिगाड़ देता हैl
बसी बसाई गृहस्ती को
मिनटों में उजाड़ देता हैl
बच्चे का निवाला छीन
बोतल में उड़ा देता हैl
दूरव्यसन के आदि को
हिंसक बना देता हैl
बिकने लगता है मकान
सड़क पर ला देता हैl
आदि इतना हो जाता है
बीमारी को नोयता देता हैl
हंसते हुए परिवार में
आग लगा यह है देता हैl
पत्नी का जेवर बिकता
बच्चों का जीवन मिटता हैl
अग्नि की लपटों के जैसा
सब को भस्म कर देता हैंl
बीड़ी, गुटखा, पान ,तमाखू
जान तुम्हारी ले लेता हैl
मेहनत मजदूरी के पैसे
मिनटों में हर लेता हैl
छोड़ोगे जब इनको
ईश्वर खुशियां भर देता है l
डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )
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