निवातिया की शायरी | Nivatiya ki Shayari

तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ

तुम क्या जानो किस दौर से गुज़र रहा हूँ,
डाली से टूटे फूल की तरह बिखर रहा हूँ !

ख़ाक से उठकर निखरने की कोशिश में,
जर्रा-जर्रा जोड़कर फिर से संवर रहा हूँ !

दर्द-ओ-ग़म के ज्वार भाटे डूबा कई दफा,
वक़्त की लहरों संग धीरे धीरे उबर रहा हूँ !

वक्त और हालातों ने गिराया पग-पग पर,
गिर-गिरकर हर एक बार मैं उभर रहा हूँ !

घटता हूँ, कभी बढ़ता हूँ, सुबह-शाम सा मैं,
पारे की तरह से आजकल चढ़ उतर रहा हूँ !

सीख लिया ज़माने की ताल से ताल मिलाना,
खुद को भी अब लगने लगा की सुधर रहा हूँ !!

गिले और शिकवे मिटाने बहुत है

सुनाने को यारो फ़साने बहुत है, सुने कौन सभी के बहाने बहुत है !

मुसीबत अनेको उठानी पड़ेगी, सर-ए-राह कांटे हटाने बहुत है !

बेताबी दिखाओ अभी से न इतनी, मिलन के हसीं दौर आने बहुत है !

सनम ना चुराओ निगाहें शरम से, हमें साथ मिल गुल खिलाने बहुत है !

जरा सोचना दिल लगाने से पहले जहां में फ़रेबी दिवाने बहुत है !

वो मर्ज-ऐ-दवा से किसी कम नहीं है क़िताबों रखे ख़त पुराने बहुत है !

अभी हार जाना गंवारा नहीं है, ज़माने को जलवे दिखाने बहुत है !

फिज़ाओ से कह दो ज़रा मंद महके, चमन में अभी दिन बिताने बहुत है !

ये वादा किया है ‘धरम’ ने सनम से, गिले और शिकवे मिटाने बहुत है !!

मुहब्बत में होते ठिकाने बहुत है

ख़ुदा की रज़ा के बहाने बहुत है,
लुटाने को उसके ख़जाने बहुत है ! १ !

न जाने वो कब क्या दिखा दे नज़ारे,
हयात-ऐ-म’ईशत फ़साने बहुत है ! 2 !

कहें शान में क्या तुझे अब हसीना,
तेरी इस हया के दिवाने बहुत है ! ३ !

ऐ आँखे ज़रा सा ठहरकर बरसना,
हमें खत पुराने जलाने बहुत है ! ४ !

अदायें दिखाने में माहिर बड़े है,
लबों पर सनम के तराने बहुत है ! ५ !

चलो तुम बचाकर के दामन यहां पर,
निगाहें है क़ातिल निशाने बहुत है ! ६ !

डगर में है मिलते कई मोड़ अकसर
मुहब्बत में होते ठिकाने बहुत है ! ७ !

‘धरम’ हम ने देखी ज़माने की आदत,
यहाँ लोग करते बहाने बहुत है ! ८ !

शब्दार्थ:
हयात – जिंदगी, जीवन।
म’ईशत = जीविका, रोज़गार, नौकरी

वफ़ा का सिला

वफ़ा का सिला तुम सवालों में रखना,
मेरा नाम शामिल जवाबों में रखना !

मेरे इन ख़तों को समझ कर के उलफ़त
मेरी यह निशानी क़िताबों में रखना !

हरे घाव काफी मुहब्बत के होंगे,
छुपा कर उन्हें तब हिजाबों में रखना !

मिटाना न दिल से, पुरानी जो यादें
सजा कर उन्हें तुम ख़यालों में रखना !!

लिखे है फ़साने जो दिल के सफ़े पर,
छुपा कर उन्हे तुम लिबासो में रखना !!

डी के निवातिया

डी के निवातिया

यह भी पढ़ें:-

जो मुमकिन हो | Ghazal Jo Mumkin ho

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *