कोई पत्थर की मूरत है | Patthar ki Murat
कोई पत्थर की मूरत है
( Koi patthar ki murat hai )
कोई पत्थर की मूरत है किसी पत्थर में मूरत है।
कैसा शहर है दिलों का ये पत्थर खूबसूरत है।
कोई पत्थर दिल होता है कोई पत्थर को पूजे है।
कोई पथरीले नयनों से देखके अपनों को पूछे हैं।
कोई पत्थर को सजाते हैं कोई पत्थर फिंकवाते हैं।
लिखा है रामनाम जिनके वही पत्थर तिर जाते हैं।
कहीं पत्थर पारस होता कहीं जीवन रस होता।
कोई पथरीली राहों पे कर्मों का भार ढोता है।
कोई पत्थर भी हीरा है कोई हीरा भी पत्थर है।
नजरिया देखने का दिल क्यों आज पत्थर है।
कोई ठोकर खा लेता है कोई पत्थर रख लेता है।
दर्द को बहते जाना है अश्कों से मोती बहना है।
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )