पिता – एक कल्पवृक्ष | Pita ek kalpavriksha
पिता – एक कल्पवृक्ष
( Pita ek kalpavriksha )
अपनी कलम से छोटा सा साहस मैंने भी किया है,
पिता पर कुछ लिखने का प्रयास मैंने भी किया है।
घने वृक्ष के समान पिता होते हैं,
जिनके साये में परिवार पलते है ,
सूरज का होते है वो ऐसा प्रकाश
गम के काले बादलों को मिटा देते है ।
मौजुदगी में उनकी सभी महफूज़ होते है,
किसी भी मुसीबत में पिता ही याद आते हैं,
माँ के साथ प्यार भरा संसार बसाकर
परिवार में अपना फर्ज बखूबी निभाते हैं ।
खुद भले सादगी से रहते है,
बच्चों को अप-टू-डेट रखते हैं,
पिता ही सभी का परिवार में
हर बात का ध्यान रखते हैं।
बेइंतहा मोहब्बत करते हैं,
लेकिन कभी नहीं बताते हैं,
करते हैं उतना ही प्यार पापा भी
बस माँ की तरह नहीं जताते हैं।
जोड़कर जमा पूंजी आशियाना बनाते हैं
बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करते हैं,
परिवार में ख्वाहिशे सबकी करने के पूरी
पिता दिन रात जी तोड़ मेहनत करते हैं ।
चेहरे पर ओज, मन में विश्वास रखते हैं,
हालात का सामना करने का साहस रखते है,
होठों पर रख के हरदम मीठी मुस्कान
हर समस्या को पिता सुलझाते है ।
अपने इसी अंदाज से आत्मविश्वास बढ़ाते है,
मुशकिलाें का सामना करना सिखाते है ,
पथ में आये चाहे अड़चने कितनी ही
हरदम आगे बढ़ते रहना हमें बताते है।
कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )