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अन्तर्द्वन्द्व | Antardwand Kavita

अन्तर्द्वन्द्व

( Antardwand )

 

मन जब अन्तर्द्वन्द से घिर जाये,
तब हार न जायें जीवन में।
हार न जायें जीवन में।
कोयल सी वाणी जब
कौए की भाँति
कानों को चुभ जाये,
हृदय की विदीर्णता पर जब
कोई लेप न लगाये।
टूटती आस जब बचाने
को कोई हाथ
पंख ना बन पाये,
सफलता की राहों में जब
शूल ही शूल बिछ जायें,
हम खुद तब हिमालय बन
तूफानों से टकराएं।
जब कोई आलिंगन को
बाँह ना फैलाये,
हम हार न जायें जीवन में,
हम हार न जायें जीवन मे।
रंगीं जीवन जब धूल-
धूसरित बन जाए,
आँगन का पौधा जब
हमीं से बिसरता जाये,
जीवन की नैया जब पतवार
का सहारा न ले पाये,
नाविक बन हम खुद तर जायें।
जब आस न आये दामन में,
हम हार न जाएं जीवन मे,
हम हार न जायें जीवन मे।
कर्म युद्ध में जब
विपदायें ही हाथ थमाएं,
कोटि जतन जब निमिष भर
काम न आने पायें,
क्षितिज तक निहारने पर भी,
कोई अपना साथ नज़र ना आये,
साथी बन स्वयं ही संघर्ष से
हम निखरते चले जायें।
जब साँस ना बचे तन-मन में,
हम हार न जायें जीवन मे,
हम हार न जायें जीवन मे।।

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Antardwand kavita

रेखा घनश्याम गौड़
जयपुर-राजस्थान

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