फागुन का रंग | Poem Fagun ka Rang
“फागुन का रंग”
( Fagun ka Rang )
वर्षा बीती शरद गया, आई बसंत बहार।
रंगीला मौसम हुआ ,फागुन का त्योहार।।
बूढ़ जवान हरे हुए ,बाल हृदय उमंग ।
तन मन सब मदमस्त हुआ, चढ़ा फाग का रंग।।
मस्तानों की टोली सजी, करे खूब हुड़दंग।
नाचे गाए मस्ती में, खूब चढ़ी है भंग।।
हाथ लिए पिचकारी , देवर डालें रंग ।
भाभी भी तैयार खड़ी , खेलन होली संग।।
अंग बचा नहि रंग से, सोहत गाल गुलाल ।
तन मन सब भीग गया, चुनरी हो गई लाल।।
प्रिय वियोग में बावरी , मन में करे विचार।
होली खेलन देख के , हिय में कष्ट अपार।।
सबके प्रिय घर आए , भूले मेरे कंत ।
एक बरस फिर बाद, आए माह बसंत।।
कवि : रुपेश कुमार यादव ” रूप ”
औराई, भदोही
( उत्तर प्रदेश।)
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