सबको ही बहलाती कुर्सी | Poem in Hindi on Kursi
सबको ही बहलाती कुर्सी
सबको ही बहलाती कुर्सी
अपना रंग दिखाती कुर्सी
दौड़ रहे हैं मंदिर-मस्जिद
कसरत खूब कराती कुर्सी
ख्वाबों में आ-आ ललचाऐ
आपस में लड़वाती कुर्सी
पैसे से है हासिल डिग्री
कितनों को अब भाती कुर्सी
ऊँचे- नीचे दम-खम भर कर
मन-मन आग लगाती कुर्सी
:सड़को से संसद तक वादे
खूब उन्हें नचवाती कुर्सी
नौकर अफ़सर खींचे- ताने
भाव बहुत अब खाती कुर्सी
संकल्प भरे तगड़ा मन में
मानस मूल्य बताती कुर्सी
कुर्सी -कुर्सी अब सब रटते
पैसा,रुतबा लाती कुर्सी।