Kavita nasha kursi ka

सबको ही बहलाती कुर्सी | Poem in Hindi on Kursi

सबको ही बहलाती कुर्सी

 

सबको ही बहलाती कुर्सी
अपना रंग दिखाती कुर्सी

दौड़ रहे हैं मंदिर-मस्जिद
कसरत खूब कराती कुर्सी

ख्वाबों में आ-आ ललचाऐ
आपस में लड़वाती कुर्सी

पैसे से है हासिल डिग्री
कितनों को अब भाती कुर्सी

ऊँचे- नीचे दम-खम भर कर
मन-मन आग लगाती कुर्सी

:सड़को से संसद तक वादे
खूब उन्हें नचवाती कुर्सी

नौकर अफ़सर खींचे- ताने
भाव बहुत अब खाती कुर्सी

संकल्प भरे तगड़ा मन में
मानस मूल्य बताती कुर्सी

कुर्सी -कुर्सी अब सब रटते
पैसा,रुतबा लाती कुर्सी।

Dr. Sunita Singh Sudha

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
( वाराणसी )
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