बोल नहीं जुटेंगे उनके
बड़ा झोल है मन में उनके
संरक्षण में पलने वाले
मौका खोजते कब भड़ास निकालें?
बारी जब विपक्ष की हो!
सत्ता पक्ष आते ही,
कैसे छिपा लें?
कैसे दबा दें?
नमक का कर्ज जल्द कैसे चुका दें?
भाव सदा रखें यही
चीख चीखकर कहें यही
ढ़ूंढ़ते बहाने हजार
चाहे चल जाए लाठी तलवार
नहीं रह गये अब निष्पक्ष-
जो कहलाते थे पत्रकार।
लोकतंत्र में मचेगा हाहाकार
जब चौथा खंभा ही करने लगेगा व्यापार
तो सोचों!
फिर बचेगा क्या यार?