मुझको कोई फ़िक्र नहीं है | Poem mujhko koi fikar nahi hai
मुझको कोई फ़िक्र नहीं है
( Mujhko koi fikar nahi hai )
मुझको कोई फ़िक्र नहीं है , रंजो गम से दूर हूँ
नींदें भी हैं कनीज मेरी , मैं मस्ती में चूर हूँ
देखके मुझको , दुनिया वाले , हौले से मुस्काते हैं
राज नहीं मैं जान सका , बदनाम हूँ या मशहूर हूँ
जीना मुझको आज पसंद है , कल की आखिर सोचे कौन
चीर के मेरा सीना देखो , खुशियों से मामूर हूँ
मेरा ईमां , हौंसला मेरा , कोई नहीं खरीद सका
दम है किस में , मुझको हिला दे , मैं तो कौहेतूर हूँ
झूठी शान ओ शौकत वाले , देखते मुझको नफरत से
खस्ताहाली , तंगदस्ती , की हालत में मजबूर हूँ
तोड़ा मुझको , हालातों ने , फिर भी मेरी जुर्रत है
मैं तो हंसता रहता हरदम , क्यों लगता रंजूर हूँ
मुझको हरगिज ये ना गवारा , मांगूं दामां फैलाकर
फाका है मंजूर मुझे , तुम कहलो मगरूर हूँ
जिस दिन मैं थक जाऊंगा , उस दिन दुनिया रुक जाएगी
बात सही ‘ गुस्ताख ‘ मैं कहता , क्योंकि मैं मजदूर हूँ
शायर: गुस्ताख हिन्दुस्तानी
( बलजीत सिंह सारसर )
दिल्ली
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