Poem Muskurana

सीख लिया है मुस्कुराना | Poem Muskurana

सीख लिया है मुस्कुराना

( Seekh liya hai muskurana )

 

हमने भी अब सीख लिया है यारों अब मुस्कुराना,
चाहें आएं कई परेशानी मेहनत से जी ना चुराना।
नज़र-अंदाज़ करना एवं बेमतलब बातें न बनाना,
गीत ख़ुशी के गाना है अब किसी से ‌ना घबराना।।

कम खाना एवं गम पी लेना बातें हज़म कर लेना,
गांव शहर के चौराहा बैठ अब गप्पे नही हांकना।
न चुगली ना तारीफ़ करना बस हां में हां मिलाना,
काबू अपनें मन पे रख न किसी का मुंह ताकना।।

ओछी हरकत वालों के अब मुंह हमको न लगना,
दूसरों का सुख देखकर अब हमको नही जलना।
ये नफ़रते भुला देती है अपने एवं अपना परिवार,
युवावस्था का जोश छोड़ना अकड़कर न चलना।।

कष्ट वाली ऐसी घड़ी एवं मनोबल को परख लेना,
बैठ चरण में माते रानी के भजन-भाव कर लेना।
अंधेरा होने के पहले ही अपने घर को चलें आना,
मौसम की तरह अब हमको ये रंग नही बदलना।।

प्राणों की रक्षा करना है मुझको ध्यान यह रखना,
ज़िन्दगी को ऐसे खुबसूरती से अब हमें है जीना।
हमने भी अब सीख लिया है यारों अब मुस्कुराना,
श्रीराम अल्लाह यीशु की बताई राहों पर चलना।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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