Poem sard hawaye
Poem sard hawaye

सर्द हवाएं सभी को समझाए

( Sard hawaye sabhi ko samjhaye )

 

 

यह सर्द हवाऍं आज सभी को समझाऍं,

ओढ़ ले यारा चादर तूं कही गिर ना जाऍं।

यह प्रकृति देती रहती है सबको ये संदेश,

रोना ना आए फूल को यें सदैव मुस्कराऍं।।

 

सनन सनन करती चलती रहती है हवाऍं,

कभी लाल-पीला-नीला करती गगन को।

इन सर्द हवाओं से स्वयं बचना व बचाना,

यही उफाने समुंद्र शान्त रखें सरोवर को।।

 

यह वक्त और कदर भी कमाल का होता,

समय के साथ-साथ ही सब बदल जाता।

इस प्रकृति को जिसने समझा एवं जाना,

दिल व जमीन हमेशा ख़ूबसूरती में होता।।

 

ये वसुंधरा भी आज धीरे-धीरे कह रही है,

वृक्ष भी मनुष्य जीवन का एक आधार है।

मत चलाना कोई भी शस्त्र इन्ही वृक्षों पर,

यह भी तो आख़िर प्रभु का ही वरदान है।।

 

चाहें चलें ये सर्द हवा या चलें ये गर्म हवा,

उदय गगन में ही होता इसी दिवाकर का।

कंपकंपाती ठंडी में लड़ना है सर्द हवा से,

मौसम बदल रहा ध्यान रखो स्वास्थ्य का।।

 

 

 

रचनाकार :गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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