सोचा कोई गीत लिखूंगी | Poem Socha koi Geet Likhungi
सोचा कोई गीत लिखूंगी
( Socha koi geet likhungi )
सोचा कोई गीत लिखूंगी
फिर से आज अतीत लिखूंगी।
निश्चल भाव समर्पित मन हो
ऐसी कोई प्रीत लिखूंगी
स्वर्णिम भोर सुहानी रातें
वह मधुसिक्त रसीली बातें
दंभ और अभिमान नहीं था
होती खुशियों की बरसातें
ऋतुओं सा परिवर्तित कैसे
हुआ वही मनमीत लिखूंगी।
सोचा कोई गीत लिखूंगी
व्याकुल हृदय अधीर हुआ है
अंत: उर में पीर सजाए
बीत रहा मधुमास भी अब तो
नयन तके टकटकी लगाए।
लौटेंगे प्रियतम जब मेरे
उस दिन अपनी जीत लिखूंगी।
सोचा कोई गीत लिखूंगी…
सजे हुए सुरताल सभी थे
गाते राग बिहाग कभी थे
धवल चंद्रिका मधुर यामिनी
दृश्य मनोहर यहीं अभी थे
वह रुठा तो हुए बेसुरे
जीवन के संगीत लिखूंगी।
सोचा कोई गीत लिखूंगी।