पाती पढ़ी जो प्रेम की

पाती पढ़ी जो प्रेम की

 

हिरनी सी कुलांचे भरती
बल्लियो मै उछलती
पाती पढ़ी जो प्रेम की ।
दिन महीने सा लगे पाती के इंतजार में
दिखती द्वारे पर खड़े पाती के इंतजार में
हाथ में पाती जो आती
अँखियां पहले मुस्कुराती
पाती पढ़ी जो प्रेम की ।
दबे पाँव सम्हल चलती पाती पढ़ने प्रेम की
ढूंढू घर का सूना कोना पाती पढ़ने प्रेम की
धड़कने भी गुम सी होती
नेह भी तन को भिगोती
पाती पढ़ी जो प्रेम की ।
पाती पढ़कर लगता मानो प्रिय से मिलकर आ गई ।
प्यासी धरती पर अचानक काली बदली छा गई ।
प्रेम वर्षा मन भिगोती
तन में सिहरन खूब होती
पाती पढ़ी जो प्रेम की ।
प्रेम पाना पाती मिलना खुशियों का खजाना है ।
जीवन में तो सब कोई गाता यह वही तराना है।
नदियों सा कलकल मै बहती पहाड़ों से बहकर निकलती ।
पाती पढ़ी जो प्रेम की ।
आज वह सुख खो गया मोबाइल के आ जाने से ।
चाहो जब तुम बात कर लो विज्ञान के खिलौने से ।
सीढ़ी चढ़ दर्शन मिले जब
ऑसू खुशी के छलकते तब
पाती पढ़ी जो प्रेम की ।

आशा झा
दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )

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