कमल पुष्प पल्लवित हो
( Kamal pushp pallavit ho )
मंद पवन का सरगम हो
जल की सतह स्थिर हो
खामोशी का आलम हो
जल के अंदर हलचल हो
पंछियों का कलरव हो
भागी भागी जिंदगी से
दो पल तेरा साथ हो
ना मैं बोलूं ना तू बोले
चट्टानों पर बैठ कभी
प्रकृति का आलिंगन हो
खिले फूल सरसों के
मन मेरा आच्छादित हो
दा साहित्य का अनंत कोटि धन्यवाद जिन्होंने मेरी रचना को स्थान दिया